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Aaj Ki Shakhsiyat: समाजवादी आंदोलन के पुरोधा- राम सेवक यादव

 

भारतीय राजनीति में ऐसे बहुत कम नेता हुए हैं जिनकी पहचान सत्ता की राजनीति से नहीं, बल्कि विचारधारा, संघर्ष और सेवा से बनी हो। राम सेवक यादव ऐसे ही नेता थे, जिन्होंने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन को समाजवादी मूल्यों, लोकतांत्रिक आदर्शों और जनहित के लिए समर्पित कर दिया। वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसा नाम थे, जो आम जनता के दिलों में भरोसे, उम्मीद और बदलाव का प्रतीक था।

प्रारंभिक जीवन: 
संघर्षों से सजी राह राम सेवक यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के एक किसान परिवार में 2 जुलाई 1926 को हुआ। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और प्रारंभ से ही सामाजिक असमानता, गरीबी और जातीय भेदभाव जैसे मुद्दों से रू-ब-रू हुए। इन अनुभवों ने उनमें एक गहरी संवेदनशीलता और बदलाव की चाह पैदा की। 

 उनका जीवन प्रारंभ से ही त्याग और सामाजिक चेतना का उदाहरण रहा। उन्होंने समाज के वंचित तबकों के साथ रहकर उनकी समस्याओं को समझा और उसके समाधान के लिए कार्य किया।

समाजवादी विचारधारा की ओर रुझान 
भारत की स्वतंत्रता के बाद जब अधिकांश नेता सत्ता में भागीदारी के लिए दौड़ रहे थे, राम सेवक यादव ने एक वैकल्पिक राजनीति की राह चुनी — वह थी समाजवाद की राह। डॉ. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव जैसे महान विचारकों के प्रभाव ने उन्हें समाजवादी आंदोलन से जोड़ दिया। 111 लोहिया जी के "सप्त क्रांति" सिद्धांत और "अंग्रेज़ी हटाओ, गरीबी हटाओ" जैसे आंदोलनों ने राम सेवक यादव के चिंतन को आकार दिया। उन्होंने समाज को जातिवाद, पूंजीवाद और शोषण से मुक्त करने के उद्देश्य को अपने राजनीतिक जीवन का मार्गदर्शक बनाया। 

 राजनीतिक जीवन: 
ज़मीन से जुड़ी राजनीति राम सेवक यादव का राजनीतिक जीवन ग्राम पंचायत से शुरू होकर विधानसभा और फिर लोकसभा तक पहुँचा। वे बाराबंकी ज़िले से विधायक और बाद में सांसद भी चुने गए। उनका निर्वाचन क्षेत्र उनका परिवार बन गया था, और उन्होंने आम जनता से कभी दूरी नहीं बनाई। 

 उनकी राजनीति का आधार था – पारदर्शिता, जनता से संवाद, और ज़मीनी मुद्दों पर केंद्रित सक्रियता। 

उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बाराबंकी और आसपास के क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क और कृषि सिंचाई से संबंधित कई योजनाओं को लागू करवाया। 

 जन आंदोलनों के मजबूत स्तंभ राम सेवक यादव सिर्फ एक निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं थे, बल्कि वे एक आंदोलनकारी नेता भी थे। उन्होंने किसानों के अधिकार, मजदूरों की मज़दूरी, दलितों और पिछड़ों के आरक्षण, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसे कई मुद्दों पर आंदोलन किए। 

उनकी सबसे बड़ी ताक़त थी — सड़क पर उतरकर संघर्ष करना। उनका मानना था कि लोकतंत्र संसद तक सीमित नहीं है, बल्कि सड़क पर भी जनता की आवाज़ बनकर खड़ा होना ही असली राजनीति है। 

 नैतिकता और सिद्धांतों के प्रतीक उनकी राजनीति का एक बड़ा पहलू था – नैतिकता और सादगी। राम सेवक यादव ने कभी भी सत्ता और सुविधाओं की राजनीति नहीं की। उन्होंने कई बार ऐसे पदों को ठुकराया जो उनके सिद्धांतों से समझौता करते थे। जब भी उनकी पार्टी या सहयोगी सरकारें जनविरोधी नीतियाँ अपनाती थीं, वह बिना हिचक आलोचना करते थे। 

वो कहते थे: "राजनीति सेवा का माध्यम होनी चाहिए, स्वार्थ का नहीं।" 

 लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव उनकी लोकप्रियता का कारण केवल उनके भाषण या पद नहीं थे, बल्कि उनका व्यवहार, लोगों से संवाद, और हमेशा जनता के बीच रहना था। वे गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याएं सुनते, उन्हें हल करने की कोशिश करते और प्रशासन से भिड़ने में पीछे नहीं हटते थे। 

 उनका जीवन इस बात का प्रमाण था कि एक सच्चा नेता वो होता है जो हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़ा रहे — न कि केवल चुनाव के समय। 

निधन और विरासत 
राम सेवक यादव का निधन 22 नवंबर को हुआ। आज भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका विचार, संघर्ष और सेवा आज भी जिंदा है। उनका जीवन नई पीढ़ी के नेताओं के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक है। आज जब राजनीति में मूल्यों की कमी देखी जाती है, तब राम सेवक यादव जैसे नेताओं की स्मृति और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। 

 म सेवक यादव सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उनका संपूर्ण जीवन समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के लिए समर्पित था। उन्होंने यह सिखाया कि राजनीति सत्ता पाने का साधन नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने का माध्यम है। उनका जीवन हमें यह भी बताता है कि सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए भी जनता का विश्वास जीता जा सकता है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को समाजवादी मूल्यों और जनसेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी।

Pioneer of Socialist Movement - Ram Sewak Yadav

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