ताज़ा खबरें

7/recent/ticker-posts

तिरंगा: भारत की मूलात्मा का वाहक, भविष्य की आशा

 

-राम पुनियानी
इस साल (2024) स्वाधीनता दिवस पर एनडीए सरकार ने एक बार फिर 'हर घर तिरंगा' फहराने का आव्हान किया. यह हर घर तिरंगा का तीसरा संस्करण था. इस अभियान की शुरुआत 2022 में भाजपा सरकार ने की थी. यह आश्चर्यजनक था क्योंकि भाजपा का विचारधारात्मक पितामह आरएसएस हमेशा से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का विरोधी रहा है. 
सन 2001 के गणतंत्र दिवस को नागपुर पुलिस ने प्रकरण क्रमांक 176 (2001) दर्ज किया, जिसके अनुसार "तीन कार्यकर्ता बाबा मेढे, रमेश कालम्बे और दिलीप छतवानी ने अन्यों के साथ 26 जनवरी 2001 को कथित तौर पर आरएसएस के रेशिमबाग़, नागपुर स्थित प्रांगण में प्रवेश किया और देशभक्ति के नारे लगाते हुए वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया." 

प्रकरण दर्ज करने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बाद में अदालत ने सभी को बरी कर दिया. इस तरह सन 2001 में अपने कार्यालय में तिरंगा न फहराने की आरएसएस की परंपरा का अंत हुआ. 

तिरंगा (जिसके मध्य में उस समय चरखा हुआ करता था), स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान देशभक्तों का प्रेरणास्त्रोत था. सन 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष चुने जाने के बाद, जवाहरलाल नेहरु ने देश के लोगों का आव्हान किया कि वे 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाएं और उस दिन अपने घरों पर तिरंगा फहराएं. इसके विपरीत, के.बी. हेडगेवार ने 21 जनवरी 1930 को एक परिपत्र जारी कर भगवा झंडा फहराने की बात कही थी. इस परिपत्र में आरएसएस के सदस्यों से कहा गया था कि वे 6 बजे शाम को शाखा स्थलों पर एकत्र हों और 'राष्ट्रीय ध्वज अर्थात भगवा ध्वज' का वंदन करें. 

 आरएसएस का तर्क यह था कि भगवा रंग अनादिकाल से हिन्दू राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता आ रहा है इसलिए देश को किसी नए झंडे की ज़रुरत नहीं है. यह बात अलग है कि स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी कर रहे सभी संगठनों और व्यक्तियों ने तिरंगे को अपना लिया. वे संस्थाएं जो स्वाधीनता संग्राम से दूरी बनाये हुए थीं केवल उन्हीं ने तिरंगे को नहीं अपनाया. इनमें शामिल थी मुस्लिम लीग (जिसने हरा झंडा अंगीकृत किया) और आरएसएस (जिसने भगवा झंडा अपमाना). हिन्दू महासभा के सावरकर भी भगवा ध्वज के पैरोकार थे. 
आरएसएस के दूसरे मुखिया एम.एस. गोलवलकर ने झंडे के सम्बन्ध में आरएसएस की सोच को साफ़ करते हुआ कहा था, "भगवा ध्वज ही भारतीय संस्कृति का उसकी पूर्णता में प्रतिनिधित्व करता है. वह ईश्वर का मूर्त स्वरूप है. हमारा यह दृढ मत है कि अंत में पूरा राष्ट्र भगवा ध्वज के सामने सर झुकाएगा." 

आरएसएस का अनाधिकारिक मुखपत्र 'द आर्गेनाइजर' अपने सम्पादकीय लेखों में लगातार तिरंगे का विरोध करता रहा और भगवा ध्वज की वकालत. संविधान सभा की ध्वज समिति के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद थे और उसके सदस्यों में सी. राजगोपालाचारी, के.एम. मुंशी और डॉ अम्बेडकर शामिल थे. उन्होंने कई प्रस्तावों पर विचार किया और अंत में यह तय पाया कि एक परिवर्तन के साथ, कांग्रेस के झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया जाए. और वह परिवर्तन यह था कि झंडे के बीच में चरखे के स्थान पर 24 तीलियाँ वाला अशोक चक्र होगा. 

संविधान सभा में झंडे से सम्बंधित प्रस्ताव को प्रस्तुत करते हुए पंडित नेहरु ने भारतीय इतिहास और संस्कृति की सराहना करते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज अतीत की गौरवशाली परंपरा की निरंतरता और भविष्य की आशा का प्रतिनिधित्व करता है. दिल को छू लेने वाले अपने भाषण में उन्होंने याद दिलाया कि भारतीयों ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए बड़े से बड़ा बलिदान दिया है. उन्होंने झंडे को सम्राट अशोक, उनकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और शांति के उनके सन्देश से भी जोड़ा और कहा कि झंडा, भारत को वैश्विक समुदाय से जोड़ने वाले सेतु का काम भी करेगा. 

नेहरु ने कहा, "हमने एक ऐसे झंडे को अपनाया है अपनी समग्रता में और अपने अलग-अलग हिस्सों में भी देश की आत्मा और देश की परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है - उस मिश्रित आत्मा और परंपरा का जो भारत में हजारों सालों में विकसित हुई है... हमने हमारे झंडे के साथ न केवल अशोक के प्रतीक को जोड़ा है वरन एक तरह से अशोक के नाम को भी जोड़ा है, जो केवल भारत के इतिहास में ही नहीं वरन दुनिया के इतिहास में भी सबसे महान नामों में से एक है." 

इसके बाद भी आरएसएस और संघ परिवार हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा का महिमामंडन करता रहा. गोलवलकर ने 'बंच ऑफ़ थॉट्स' (गोलवलकर के भाषणों और लेखन का संग्रह) में "ड्रिफ्टिंग एंड ड्रिफ्टिंग" शीर्षक लेख में लिखा, "हमारे नेताओं ने हमारे देश के लिए एक नया झंडा चुना है. उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह केवल अस्थिरता और नक़ल का उदाहरण है?...हमारा भारत एक प्राचीन और एक महान देश है. क्या हमारा कोई अपना झंडा नहीं था? क्या इन हजारों सालों में हमारे देश का कोई प्रतीक चिन्ह नहीं था? निसंदेह था. फिर हमारे दिमाग में यह नितांत रिक्तता, यह पूर्ण निर्वात क्यों?" 

सावरकर ने भी तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया. उसके बहिष्कार का आव्हान करते हुए 21 सितम्बर 1941 को जारी एक वक्तव्य में उन्होंने कहा, "जहाँ तक झंडे का प्रश्न है, हिन्दुओं के लिए हिंदुत्व का पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व करने वाला कोई और झंडा नहीं है सिवाय कुंडलिनी-कृपाणांकित महासभा के झंडे के, जिसमें हिन्दू नस्ल और उसकी रीति-नीति के सर्वाधिक प्राचीन प्रतीक ओम एवं स्वस्तिक अंकित हैं, जो युगों से होकर हम तक पहुंचा है और जिसे पूरे हिंदुस्तान में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. इसलिए किसी भी ऐसे स्थान या कार्यक्रम, जहाँ इस अखिल हिन्दू झंडे का सम्मान नहीं होता, का हिन्दू महासभा के सदस्यों को बहिष्कार करना चाहिए." 

हर घर तिरंगा अभियान, एक अर्थ में, भाजपा सरकार के एक सधी हुई चाल है. वह हिन्दू राष्ट्रवाद के अपने मूल एजेंडे से कोई समझौता किये बगैर केवल प्रतीकात्मक परिवर्तन करना चाहती है. प्रतीकों के बारे में उसकी नीति यह कि उन प्रतीकों को अपना लिया जाए जो आमजनों के मानस में गहरे तक पैठे हुए है. इसके साथ ही उसने कई ऐसे नए दिवस भी प्रस्तावित किये हैं जिनके ज़रिये वह अपना विघटनकारी एजेंडा लागू करना चाहती है. इनमें शामिल है विभाजन विभीषिका दिवस (14 अगस्त) जिसका उद्देश्य देश के विभाजन के कारण हिन्दुओं को हुई तकलीफों की याद दिलाना है. मुसलमानों ने जो कष्ट भोगे, उनके बारे में भाजपा चुप है. इसी तरह अटलबिहारी वाजपेई के जन्मदिन 25 दिसंबर को 'सुशासन दिवस' घोषित कर दिया गया है. यह क्रिसमस के उत्सव के महत्व को घटाने का प्रयास है. 

 तिरंगे का इस्तेमाल लोगों को आतंकित करने के लिए भी किया जा रहा है. धार्मिक त्योहारों पर तिरंगा रैली निकाली जाती हैं, जो जानबूझकर मुस्लिम-बहुल इलाकों से गुज़रती हैं. रामनवमी पर मस्जिदों की गुम्बद पर चढ़ कर वहां तिरंगा फहराने की घटनाएँ भी हुईं हैं. हर घर तिरंगा अभियान केवल एक ढकोसला है. त्याग, शांति और विविधता जैसे जिन मूल्यों का तिरंगा प्रतीक है, उनके प्रति भाजपा की कोई प्रतिबद्धता नहीं है. 

 (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
bjp
amit shah architect
annamalai bjp
apna dal official website
architect of the new bjp
arvind kejriwal on kashmir files
avadhut wagh
bagga bjp
bandi sanjay kumar
bhajpa scooty
bhanu prakash bjym
bharatiya janata party website
bjp 1
bjp 150
bjp 2
bjp 2022
bjp 2024
bjp aap
bjp and congress flag
bjp annamalai
bjp burberry
bjp cabinet ministers
bjp car
bjp cloth
bjp com
bjp congress flag
bjp flag
bjp flag and indian flag
bjp flag for car
bjp flag in car
bjp flag online
bjp flag price
bjp flag symbol
bjp flag with indian flag
bjp flag with modi
bjp history
bjp in 2024
bjp modi
bjp national flag
bjp new flag
bjp official flag
bjp official website
bjp online
bjp online shopping
bjp painting
bjp party
bjp party flag
bjp party sign
bjp party symbol
bjp rakhi
bjp ralliart
bjp s
bjp sign
bjp site
bjp symbol
bjp website
bjp whatsapp
bjp wins
bjp4gujarat
bjym bhanu prakash
bs yediyurappa
chandrakant patil
congress bjp flag
conor mcgregor bjp
dharam singh saini
dharmapuri arvind
dilip ghosh
diya kumari taj mahal
draupadi murmu
eatala
flag of bharatiya janata party
flag of bjp party
geetanjali shree bjp
hardik bjp
hardik patel bjp
j sai deepak bjp
jiri prochazka bjp
jp nadda
kailash vijayvargiya
kejriwal kashmir files
kejriwal on kashmir files
keshav prasad maurya
lal krishna advani
lk advani
lodha bjp
madhav bhandari
manjinder singh sirsa
modi 2024
modi bjp
modi yogi
mp locket
mp surya
mukhtar abbas naqvi
nadda
national flag bjp
naveen kumar jindal
new bjp symbol
om mathur
pankaja munde
pramod mahajan

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ