भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे नेता होते हैं जो अपने विचारों, संघर्षों और नीतियों के माध्यम से देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ऐसे ही एक सशक्त नेता थे बेनी प्रसाद वर्मा, जिन्होंने समाजवाद की विचारधारा को अपनाकर जनकल्याण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। वे अपने स्पष्ट विचारों, ईमानदार छवि और दृढ़ निश्चय के लिए जाने जाते थे। उनका पूरा जीवन समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म 11 फरवरी 1941 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे बेनी प्रसाद वर्मा को प्रारंभ से ही सामाजिक अन्याय और असमानता का सामना करना पड़ा। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि थी, और उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर राजनीति में प्रवेश किया। उनका समाजवाद से जुड़ाव उनके छात्र जीवन से ही देखा गया, जब वे समाजवादी विचारकों के विचारों से प्रभावित हुए।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
बेनी प्रसाद वर्मा ने अपनी राजनीतिक यात्रा समाजवादी आंदोलन से शुरू की। डॉ. राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने समाजवादी पार्टी का हिस्सा बने। उनके संघर्षशील व्यक्तित्व ने उन्हें जल्द ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित कर दिया। वे मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी बने और समाजवादी पार्टी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई।
लोकसभा में प्रवेश और केंद्रीय मंत्री पद
बेनी प्रसाद वर्मा ने 1996 में लोकसभा चुनाव जीता और केंद्र सरकार में मंत्री बने। 1996 से 1998 तक वे संचार मंत्री के रूप में कार्यरत रहे और इस दौरान दूरसंचार क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलाव लाए। उनके कार्यकाल में भारत में संचार सेवाओं का विस्तार हुआ और सस्ती टेलीफोन सेवाएं आम जनता तक पहुंची।
बाद में, 2009 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थामा और मनमोहन सिंह सरकार में इस्पात मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारतीय इस्पात उद्योग को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, जिससे इस क्षेत्र में भारी निवेश और उत्पादन वृद्धि हुई।
किसानों और गरीबों के लिए योगदान
बेनी प्रसाद वर्मा का सबसे बड़ा योगदान किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए था। उन्होंने हमेशा किसानों की समस्याओं को गंभीरता से उठाया और उनके लिए सरकार से बेहतर नीतियां बनाने की मांग की। उन्होंने खाद्य सुरक्षा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर जोर दिया।
उनका मानना था कि समाजवाद का असली अर्थ तब पूरा होता है जब समाज के सबसे निचले तबके को न्याय और आर्थिक सुरक्षा मिले। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कई ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नीतियों से प्रदेश के किसान और मजदूर वर्ग को काफी लाभ हुआ।
समाजवादी आंदोलन में भूमिका
बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी आंदोलन के सशक्त स्तंभों में से एक थे। उन्होंने हमेशा समाजवाद के मूल सिद्धांतों का पालन किया और जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर काम किया। वे मानते थे कि भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में समाजवाद ही एकमात्र ऐसा विचारधारा है, जो सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार प्रदान कर सकती है।
उनका कहना था, "विकास का असली उद्देश्य तब पूरा होता है जब अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचे।" उन्होंने हमेशा गरीबों, दलितों, पिछड़ों और किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
संघर्ष और विवाद
हालांकि बेनी प्रसाद वर्मा का राजनीतिक जीवन सफलता से भरा रहा, लेकिन वे कई बार विवादों में भी रहे। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच उनका बार-बार आना-जाना उनके समर्थकों के लिए आश्चर्यजनक रहा। समाजवादी पार्टी में रहते हुए भी उन्होंने कई बार पार्टी के फैसलों से असहमति जताई। लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनसमर्थन हमेशा उनके साथ रहा।
1997 में, बेनी प्रसाद वर्मा ने लखनऊ की एक रैली में बीआर अंबेडकर की आलोचना करते हुए कहा कि "अंबेडकर ने गांधीजी के लिए परेशानी पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं किया ।"
दिसंबर 2009 में लोकसभा में बहस के दौरान बेनी प्रसाद ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को "निम्न स्तर का व्यक्ति" कहा था। उसी बयान में वर्मा ने लालकृष्ण आडवाणी की भी आलोचना की थी । इससे भाजपा नेताओं में गंभीर आक्रोश पैदा हो गया और उन्होंने तुरंत नारेबाजी करके विरोध जताया, संसद को ठप कर दिया और माफ़ी की मांग की और कहा कि वर्मा के माफ़ी मांगने तक वे लोकसभा का बहिष्कार करेंगे। वर्मा ने बयान के लिए माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया।
फरवरी 2012 में, उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान वर्मा ने चुनाव आयोग को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी, उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए कोटा बढ़ाया जाएगा। वर्मा ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और केंद्रीय कानून और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद की मौजूदगी में कायमगंज में एक रैली को संबोधित करते हुए यह बात कही । इससे पहले, खुर्शीद ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि वह मुसलमानों के लिए नौ प्रतिशत उप-कोटा पर बोलना जारी रखेंगे, भले ही चुनाव आयोग कहे कि चुनावों के दौरान ऐसा वादा करना दिशा-निर्देशों के खिलाफ है।
19 अगस्त 2012 को उन्होंने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक टिप्पणी की कि "बढ़ती कीमतों के साथ, किसानों को लाभ हो रहा है। दाल, आटा, सब्जियां सभी महंगी हो गई हैं। मैं इस मूल्य वृद्धि से खुश हूं। जितनी अधिक कीमतें बढ़ेंगी, किसानों के लिए उतना ही अच्छा होगा," मंत्री ने कहा।
15 अक्टूबर 2012 को उन्होंने एक विवादास्पद टिप्पणी की कि "मेरा मानना है कि सलमान खुर्शीद 71 लाख रुपये का गबन नहीं कर सकते। एक केंद्रीय मंत्री के लिए यह बहुत छोटी राशि है। अगर यह राशि 71 करोड़ रुपये होती तो मैं इसे गंभीरता से लेता।"
13 दिसंबर 2012 को उन्होंने अफ़ज़ल गुरु की फांसी का विरोध किया। उन्होंने कहा: " अफ़ज़ल गुरु को फांसी मत दो बल्कि उसे आजीवन कारावास दो"।
दिसंबर 2013 में जब उनसे राहुल गांधी के गृह क्षेत्र अमेठी से कुमार विश्वास के राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "वह क्या लड़ेंगे, कैसे लड़ेंगे। वह एक जोकर के अलावा कुछ नहीं हैं। वहां पहले से ही बहुत सारे जोकर हैं, वह उनमें शामिल हो सकते हैं।"
2014 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा था कि "हमें भविष्य का प्रधानमंत्री चाहिए, नरभक्षी नहीं।" इस बयान के लिए वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
2016 में, उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दोषी ठहराया और कहा कि "जब महात्मा गांधी की हत्या हुई, तो आरएसएस कार्यकर्ताओं को पहले से ही कहा गया था कि वे अपने रेडियो सेट चालू रखें क्योंकि उन्हें अच्छी खबर सुनने को मिलेगी।"
विकास के प्रतीक
बाराबंकी जनपद में लोग पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा कराए गए विकास कार्यों को आज भी याद करते हैं। यहां तक कहा जाता है कि जिले में विकास की सही शुरुआत बेनी प्रसाद वर्मा ने ही की। बेनी प्रसाद वर्मा को जब भी सरकार में मौका मिला, ये बाराबंकी के लिए बड़ा शुभ रहा। समाजवादी पार्टी में वह मुलायम सिंह के बाद दूसरे नम्बर के नेता के रूप में माने जाते थे। कहा जाता था कि मुलायम सिंह स्वयं अपनी बात काट सकते हैं, मगर बेनी प्रसाद वर्मा की बात कभी नहीं काटते। प्रदेश में जब पहली बार सपा सरकार बनी तो लगभग सभी महत्वपूर्ण विभाग बेनी प्रसाद वर्मा के पास थे। इनमें लोक निर्माण विभाग, आबकारी, सिचाईं आदि।
बाराबंकी बेनी प्रसाद वर्मा की सिर्फ जन्म स्थली ही नहीं बल्कि उनकी कर्मस्थली भी रही। उनके प्रशंसक बेनी प्रसाद वर्मा के राजनीति में उदय को बाराबंकी के भाग्य के उदय से जोड़कर देखते हैं। समाजवादी पार्टी की पहली सरकार में जब वह लोक निर्माण विभाग मंत्री बने तो बाराबंकी जिले में सड़कों का जाल बिछा दिया गया। केन्द्रीय संचार मंत्री बनने पर देश का सबसे अधिक क्षमताओं में गिना जाने वाला टेलीफोन एक्सचेंज बाराबंकी में बनवाकर बेनी प्रसाद वर्मा ने एक बार फिर जिले के प्रति अपनी भावना को व्यक्त किया। यही नहीं यूपीए-2 में केन्द्रीय इस्पात मंत्री बनने पर वह सांसद तो गोंडा से थे मगर सबसे ज्यादा विकास कराया बाराबंकी का।
बेनी प्रसाद वर्मा ने समाजवादी राजनीति में जो योगदान दिया, उसे भुलाया नहीं जा सकता। वे गरीबों और किसानों के लिए संघर्ष करने वाले नेता थे, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय जनता की सेवा में बिताया।
27 मार्च 2020 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और योगदान आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनकी राजनीति ने यह साबित किया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी व्यक्ति समाज की बेहतरी के लिए बदलाव ला सकता है।
बेनी प्रसाद वर्मा भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से थे, जिन्होंने अपनी नीतियों और विचारों से समाजवाद और विकास को एक साथ आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उनका जीवन संघर्ष, ईमानदारी और समाज सेवा की मिसाल है। उन्होंने न केवल किसानों और मजदूरों की आवाज़ को बुलंद किया, बल्कि दूरसंचार और इस्पात जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण सुधार लाए। उनकी विरासत हमेशा समाजवादी विचारधारा और गरीबों के उत्थान के प्रतीक के रूप में याद की जाएगी।
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