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UP: युवा पीढ़ी को सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराएगी समर कल्चरल वर्कशॉप

 

Lucknow News... भारतीय सभ्यता और संस्कृति, मान्यताओं एवं गौरवशाली इतिहास एवं विरासत से युवा पीढ़ी को खासतौर से बच्चों को जोड़ने के लिए संस्कृति विभाग द्वारा ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों और युवाओं को लोकनृत्य, लोकसंगीत, चित्रकला, कठपुतली, नाटक, पारम्परिक हस्तशिल्प तथा लोक कथाओं जैसे विविध विधाओं के माध्यम से प्रशिक्षण देना है। यह प्रशिक्षण स्थानीय कलाकारों, गुरूजनों और विशेषज्ञों द्वारा दिया जायेगा। जिससे प्रतिभागियों को तथ्यपरक और व्यवहारिक ज्ञान मिल सके और अपनी जड़ों से जुड़ सके। 

यह जानकारी प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने शुक्रवार को लखनऊ में दी। उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वजों ने कहा था कि संस्कृति केवल स्मृति नहीं, वह सृजन का स्त्रोत है। उसी भावना से प्रेरित होकर प्रदेश के कोने-कोने में भारतेंदु नाट्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, लोक एवं जनजातीय कला संस्थान, भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, बिरजू महाराज कथक संस्थान, और अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के माध्यम से विशेष कार्यशालाएँ संचालित की जा रही हैं।

 जयवीर सिंह ने बताया कि इन कार्यशालाओं का उद्देश्य मात्र प्रशिक्षण नहीं है, बल्कि वहभावी पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का एक सकारात्मक प्रयास है। आज जब वैश्वीकरण की लहर में हमारी लोकपरंपराएं और मूल्यों पर संकट है, तब ऐसे प्रयास नयी पीढ़ी को उसकी जड़ों से जोड़ने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। गाँवों से लेकर नगरों तक, हर वर्ग, हर क्षेत्र के बच्चों को मंच मिला है। 

 पर्यटन मंत्री ने बताया कि इस वर्ष की कार्यशालाओं की एक विशेषता यह है कि इनमें भारत की प्राचीन और बौद्धिक परंपराओं को भी स्थान दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थानद्वारा लखनऊ में आयोजित “बुद्ध पथ प्रदीप कार्यशाला“में बच्चों को भगवान बुद्ध के जीवन, धम्म और करुणा आधारित मूल्य शिक्षा दी जा रही है। ध्यान, सह-अस्तित्व और नैतिकता जैसे विषयों पर संवाद और अभिनय के माध्यम से बच्चों में बौद्ध दर्शन की मूल आत्मा का प्रसार किया जा रहा है। इसी क्रम मेंजैन विद्या शोध संस्थानद्वाराजैन दर्शनपर कार्यशालाओं का आयोजन हो रहा है, जिसमेंअहिंसा, अपरिग्रह, सत्यजैसे सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में समझाया जा रहा है। 

 जयवीर सिंह ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश) द्वारा ’सृजन’ ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं के अंतर्गत अब तक प्रदेश के 55 जिलों में कुल 59 कार्यशालाएं संपन्न कराई जा चुकी हैं। ये कार्यशालाएं प्राथमिक विद्यालय, सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से आयोजित की गईं। अधिकांश कार्यशालाएं सात एवं दस दिवसीय रही हैं। इन कार्यशालाओं का मुख्य उद्देश्य विलुप्त हो रही लोककलाओं को संरक्षित कर नई पीढ़ी तक पहुँचाना रहा है। कार्यशालाओं की विषयवस्तु में उत्तर प्रदेश की समृद्ध लोक परंपराओं को शामिल किया गया, जिनमें प्रमुख हैं कृ भगत, ढोला-मारु, नौटंकी, आल्हा, सोहर, बुंदेली गायन, चंदौल नृत्य, मयूर एवं होली नृत्य, संस्कार गीत, कठपुतली कला, जनजातीय नृत्य एवं गायन, राई नृत्य, रसिया ब्रजलोक गायन, तथा लोकगीतों में श्रीराम-केवट संवाद एवं शबरी प्रसंग आदि शामिल हैं। पर्यटन मंत्री ने बताया कि हस्तशिल्प की श्रेणी में थारू जनजाति की मूंज शिल्प कला, रंगोली, बुंदेली चितेरी कला के अंतर्गत मुखौटा निर्माण एवं पारंपरिक चौक पूरण चित्रकला की कार्यशालाएं आयोजित की गईं। वहीं वादन की श्रेणी में ढोलक वादन की कार्यशाला ने प्रतिभागियों को लोकवाद्य की लय और ताल से परिचित कराया। इन कार्यशालाओं के माध्यम से पारंपरिक कलाओं को पुनर्जीवित करने एवं स्थानीय प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने का सार्थक प्रयास किया गया है।

जयवीर सिंह ने बताया कि संस्कृति विभाग द्वारा किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप पिछले तीन वर्षों में उत्तर प्रदेश मेंसांस्कृतिक चेतना का एक नया युगप्रारंभ हुआ है एवं सांस्कृतिक आयोजनों की संख्या लगभग तीन गुनाबढ़ी है।ग्राम्य और शहरी क्षेत्रों के नवोदित कलाकारों, महिलाओं और युवाओं की भागीदारीमें अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।लोक कलाओं को संरक्षितकर पुनर्जीवित किया गया है। इस समग्र प्रयास का उद्देश्य स्पष्ट है, उत्तर प्रदेश को भारत की सांस्कृतिक राजधानीके रूप में स्थापित करना।


Summer cultural workshop to introduce young generation to cultural values

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